इन दिनों #सिलबट्टा आभासी संसार में छाया हुआ है। इसके बहाने एक और स्त्री-विमर्श चल रहा है। हिंदी में चलने वाले नाना प्रकार के विमर्शों में आक्रामकता ज्यादा, वैचारिकी कमतर रहने की परंपरा है। पहले फिर भी वैचारिकी ऐसे विमर्शों में रहती थी, संपादक नामक संस्था के चलते, अब सोशल मीडिया ने ‘फ्री फॉर ऑल’ का जो प्लेटफार्म उपलब्ध कराया है, संपादक-संपादन अर्थहीन हो चला है। नतीजा व....