स्कूल की दुनिया मुझे एकरस लगने लगी थी। जिस उत्साह के साथ काम का नशा था वह कमजोर पड़ रहा था। मैं जिस पेस के साथ जीने का आदी था वह धीरे-धीरे तिरोहित हो रहा था। मैं समझता हूं कि कभी-कभी ऐसा इसलिए भी होता है कि आप अपनी शक्ति से ज्यादा काम करके थक चुके होते हैं या यह भी हो सकता है कि जिस्म और रूह एक ब्रेक मांगती हो। मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था। लेकिन जब आप एक ही विषय पर सोचत....