- श्रेणियाँ
- संपादकीय
- कहानी
- कविता
- गजल
- रचनाकार
- पाखी परिचय
- पिछले अंक
- संपर्क करें
साहित्य में, चाहे भारतीय भाषाओं में लिखा गया साहित्य हो या पिफर विदेशी, हमेशा से ही शील-अश्लील एक बड़ा मुद्दा रहा है। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का कहना था कि साहित्य समाज दर्पण है। यदि द्विवेदी जी के कथन को सत्य मान लिया जाये तो निश्चित ही यह भी मानना होगा कि दर्पण में वही दिखता है जो उसके सामने हो, यानी प्रतिबिंब। समाज में जो घट रहा होता है, उसी को, अपने शब्दों में साहित....