सुबोध मिश्र

चढ़ावा

वह गूंगी थी और बहरी भी।
इसी आधर पर उसके द्वारा दिए गए साक्ष्य को 
संदेहास्पद की संज्ञा देते हुए न्यायालय नें उन सामथ्र्यवंशी युवकों को ससम्मान मुक्त कर दिया था। वे दोनों युवक बैंडबाजे के साथ घर की ओर कूंच कर गए और यह गरीब न्यायालय के प्रांगण की एक दीवार से पीठ टिकाए, घुटनों के बीच अपना सिर दबाए सुबकती बैठी रह गई। उसका बूढ़ा बाप उससे थोड़ी दूर बैठा उसे गालियां देता रहा....

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