ममता कालिया

टेढ़ा था पर मेरा था

आज ई मेल, मोबाइल फोन और वॉट्सएप के तुरंत— संचार के युग में लोग भूल गए होंगे कि दो—ढाई दशक पहले तक का ज़माना चिट्ठी—प्रेम का था। तब मुल्क में डाक तार सेवा दुरुस्त थी। कहीं भी चिट्ठी डालो, तीसरे चौथे दिन पहुंच जाती। इतना इंतजार नागवार न होता। चिट्ठी डालना सरल भी था। हर लेखक के पास पोस्टकार्ड, अन्तर्देशीय पत्र और लिफाफों का एक छोटा—सा खजाना होता। जेब में कलम होती। लैटरपैड न भी हो....

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