अपूर्व जोशी

मानवीय गरिमा को जिलाए रखने का प्रश्न

मैं लेकिन समझता हूं सृष्टा होने का मुगालता किसी को भी सृष्टा और सृष्टि से दूर कर देता है। इतना दूर की वह सृजन कर पाने में अक्षम हो जाता है। यदि लेखक के भीतर मानवीय संवेदनाएं और सरोकार मर जायें तो चाहे वह लाख प्रयास कर ले, उसका सृजन मात्र शब्दों का वाग्जाल भर रहेगा। वह न तो किसी क्रांति का कारक बन सकेगा, न ही किसी क्रांति यज्ञ में आहुति बन पायेगा। अल्....

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