"कि मैं सबकी तरफ से बोलता हूं
और बोलता हूं अपने भीतर की सारी सच्चाई के साथ
पर मेरे नेक निर्माता ने मुझे दी नहीं अनुमति
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।