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जिसे हम सामान्यतः प्रेम समझते हैं उसका विलोम है घृणा और अनुलोम अहंकार। जब तक हमारे अहंकार की तृप्ति होती रहती है हम उसे प्रेम का नाम दिए रहते हैं। जैसे ही उस पर चोट पहुंचती है, सारा प्रेम हवा हो जाता है और उसके स्थान पर घृणा आ जाती है। प्रेम और घृणा में, नफरत में जबर्दस्त जुगलबंदी है। कह सकते हैं कि प्रेम का शीर्षासन करता रूप घृणा है। चूंकि अहंकार हमारे भीतर मौजूद ऐसा तत्व ....