आशुतोष

रंग भी तूं रंगरेज भी तूं

‘‘स्त्री के मान का निहोरा किया जाता हैैै, उसे मथा नहीं जाता।’’
 बात-व्यवहार की गजब गहबर थीं विषुनपुरावाली भौजी। ऊपर से उनके होठों से कलोल करती झुलनी सोझे जुलुम ढ़ाती थी। खूब सुघर देह-ध्वजा। पाँव जैसे एक जोड़ा ठनकत परेवा और माथा जैसे दमकता हुआ बरम बाबा का पिंडी। सुग्गा के चोंच जैसे लाल-लाल होठ। उन्हीं होठों की लाली पर हाल ही में आबाद हुई थी श्रीकांत भइया की ....

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