दिया बुझा दिया है अभी मसल कर आहिस्ता
डूबते धुएं में देखता हूं तुम्हारा पिघलता अक्स
(एक)
कैसी हो तुम ठीक इस वक्त
जब आवाजें बिखरने लगी हैं धुंध में
शाम ने अंगड़ाई ली है और
हलके नशे में रात सी हो रही है उसकी शक्ल
एकदम तुम जै....
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।