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हमारे लिए देशहै देस- अपना गांव, अपनी माटी, अपने लोग, अपनी संस्कृति, जहां हमारे प्रथम रुदन और मां की लोरी से फूटता है जीवन-संगीत, जहां दादी- नानी की गोद में बैठे हुए उनींदी रात में या अंगड़ाई लेती भोर में अपने खुरदुरे हाथों में सरसो तेल लगाकर आग की धाह पर गरमाते हुए अपने नरम-गरम हाथ से पीठ को सेंकती हुई दादी, नानी की प्रेमिल निगाहें और जिनके हाथों और दिल की निर्मल बोरसीकी गर्म....