अमरेंद्र कुमार शर्मा

मेरे प्यारे देश 

‘मोर्चा’

तो,

लो- 

मैं,

कविता के भीतर 

कविता में खोलता हूं मोर्चा  

तुम्हारी तमाम वाचलता और झूठ के विरुद्ध तुम्हारे द्वारा कैद 

और हत्या कर दिए जाने की 

तमाम संभावनाओं के बीच 

 

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