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स्नेह के रंग में रंगा वह घर वह आंगन
जहां खिले रहते थे अनगिनत फूल
जिनकी खुशबू से घर ही नहीं
महक उठता था सारा गांव
जो तेज हवाओं में भी
मिलते रहते थे एक दूसरे के गले
जब से उस आंगन में दूर-दूर से उड़
आ गईं हैं रंग बिरंगी तितलियां
तब से बाबा तुलसी की यह पंक्ति
"सुत मानहिं मात-पिता तबलौं ,अबलानन दीख नहीं जबलौं "
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