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कितनी पीड़ाओं से निथर कर आती है एक अशरीरी हँसी
मैं जी भर पीना चाहती हूँ वो हँसी
जो किसी सधे ख्याल की तर्ज नहीं तीतर पक्षी की मध्यम टेर सी है
या किसी जलपाखी की अपने जोड़े के लिए झझक कर उठी पुकार है
किसी पर्वत से निःसृत होकर निकले जलप्रपात के नाद सी हँसी
जरूर इसे ही हमारे पुरखों ने गंगाजल या आबेजमजम कहा होगा
पर थो....