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अपनी स्मृति के प्रथम अध्याय का
यह गीत सबसे पहले याद आता है-
"बजे सरगम हर तरफ से गूँज बनकर देश- राग"
तब से मैंने देश को राग की ही तरह सुना
जिसके विभिन्न स्वर
अपनी लय में आरोह-अवरोह का तान रचते रहे
फिर भूगोल के ग्लोब पर चिपका हुआ वह विशिष्ट भू-भाग
दिक् और काल की अवधारणा में लिपटा
सीमित जल
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