पहले एक नज़र उन पंक्तियों पर जो बलराम ने रवीन्द्र कालिया के उपन्यास ‘17, रानडे रोड’ की चर्चा करते हुए ‘माफ़ करना यार’ म
पूरा पढ़ेचार दशक पहले एक पौधे को नई जमीन में रोपा गया। पौधा उगा और बढ़ा परंतु अपनी ही मिट्टी में लिपटा रह गया।
पूरा पढ़ेवर्षों (संभवतः 25 वर्ष) पहले `हिंदी कथाकारों की पहाड़ चेतना’ शीर्षकान्वित दीर्घ आलेख में एस. आर. हरनोट के हवाले से मैं
पूरा पढ़ेमैंने बहुत मनोयोग से पढी और इन उल्लेखनीय कहानियों पर अपनी पाठकीय प्रतिक्रिया व्यक्त करने से नहीं रोक पाया।
पूरा पढ़ेलगभग एक दशक लम्बी यात्रा के बाद भी आलोचकों ने लघुकथाओं को ज्यादा तवज्जो नहीं दी, तथापि अनेक लघुकथाकारों ने इस विधा
पूरा पढ़ेअरसा पहले मैंने ममता कालिया की एक लंबी कहानी पढी थी - 'अकेलियां दुकेलियां'। उसकी स्मृति अब भी जहन में है। उसमें किस
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