असग़र साहब के करीब आने का मौका मुझे तब मिला, जब उनके लिखे धारावाहिक ‘बूंद-बूंद’ का हिस्सा बना। यह 1985 की बात है। उसी सा
राजेंद्र गुप्ता
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।