(पुरस्कृत पत्र) ‘पाखी’ का जुलाई अंक संपूर्णतः पढ़कर पहले तो अंदर सूना-सूना-सा लगा, पर अब आनंदित महसूस कर रहा हूं। सू
चिट्ठी आई है
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।