‘पाखी’’ की साहित्यिक सामग्रियों में अभूतपूर्व और सुखद परिवर्तन हुआ है। इसमें कोई संदेह नहीं है। पचास रुपए में एक
चिट्ठी आई है
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।