‘पाखी’ का मार्च का अंक मिला। इससे पूर्व भी संयुक्तांक अद्भुत था। लेकिन ऐसा लगता है आपने पाठकों की प्रतिक्रिया छाप
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।