लोक जीवन में प्रेम चाहे जितना भी वर्जित कर्म माना जाय तब भी वह कभी न रुका और न दबाया ही जा सका। मनुष्यों से पहले तो यह
पूरा पढ़ेप्रेम वह बला है जो झोंके की तरह आये है और निकल जाए है। अगर ठहर जाए तो दिल पर पत्थर की तरह बैठ जाए है। प्रेम होगा तो दुख
पूरा पढ़ेप्रेम, दर्शन में रचनात्मक होना है। वह दर्शन को 'देखने' लायक बनाता है और रचनात्मकता को जीने लायक। हमारी इस पृथ्वी पर
पूरा पढ़ेजिसे फैज ‘उम्र-भर एक मुलाकात चली जाती है’ की स्थिति कहते हैं, दांते की बिएट्रिस वाली वह स्थिति अपने यहाँ के रेजिमेण
पूरा पढ़ेलोक में प्रेम और प्रेम का लोक भी अजीब है। वह दो दिलों में पैदा होता है और सारी सृष्टि में फैल जाता है। महादेव को भी स्
पूरा पढ़ेमुझे बड़े-बड़े, वृहद उपन्यास पढ़ना खूब पसंद है। चंद्रकांता संतति, मृत्युंजय, गणदेवता, अन्ना केरेनिना, अपराध और दंड आदि
पूरा पढ़ेप्रेम कविता पर बात करना रचनाकार के अंतरतम की टोह लेना है| यह रचना और सर्जक के बीच का मामला है| निजी मामला| निजता का अह
पूरा पढ़ेभारतीय और विश्व साहित्य व दर्शन में प्रेम को परिभाषित करने की जाने कितनी कोशिशें हुई हैं। दिलचस्प है कि प्रेम की व
पूरा पढ़े‘प्रेम’ का ‘कहानी’ से रिश्ता उतना ही पुराना है, जितनी पुरानी स्वयं कहानी की उत्पत्ति। मिथक से लेकर लोक तक कथाओं मे
पूरा पढ़ेप्रेम आदम जात की नैसर्गिक व कदाचित सर्वाधिक जटिल वृत्ति है| मनुष्य की इस वृत्ति व इसके जैसी अन्य आदिम वृत्तियों क
पूरा पढ़ेमेरे समक्ष स्त्री – प्रश्नों पर केन्द्रित तीन उपन्यास हैं और तीनों की थीम प्रेम, देह सामाजिक यथार्थ का जटिल विमर्श
पूरा पढ़ेसार्त्र औऱ सिमोन का जीवन स्वतंत्रता से आग्रह और स्वतंत्रता की चाह में हर तरह के विद्रोह और अनूठेपन की अभिव्यक्ति ह
पूरा पढ़ेओशो एक बार एण्डु कारनेगी का जीवन पढ़ रहे थे वह अमेरिका का सबसे बड़ा अरबपति था उनकी मृत्यु हुई तो दस अरब रुपये छोड़ कर ग
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