कहानी

  • विश्वासघात

    पूर्व पीठिका: लेखक बनाम कथाकार कुछ लिखता तब है जब कोई थीम अथवा घटना रूपी कीड़ा उसके दिलो-दिमाग का कुतरने लगता है। वह

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  • मेरी भी सुनो डार्विन

    ठीक है, मैं पांच घंटे से इस थाने में कैद हूं, इसका अर्थ यह नहीं कि एक लड़की पर गंदी-गंदी फब्तियां कसी जाएं। सिपाही, मु

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  • राज़दारी

    आज हारून मियां की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था. दिल में अरमानों के फूल तो क्या पूरे-पूरे बागीचे ही खिले हुये थे. उनकी ज़िन्द

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  • हाफ टिकट वाला न्यायतंत्र 

    ऐसी भी कुछ रातें होती थीं जब दो- तीन बजे तक बिस्तर पर पड़े पड़े करवटें बदलते रह जाते थे जज साहेब. जब उससे थक जाते तो बिस्

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  • देहदंश 

    इस बार दिल्ली प्रवास कुछ लंबा हो गया था | साल में एक दो बार और वो भी बड़ी मुश्किल से मै दिल्ली आती हूँ | एक बार आने के बाद

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  • नील गगन में

    आज रविवार है। आज के दिन वह थोड़ा आराम से ही उठता है। ये वैसे भी निपट जाड़े के दिन हैं। घने कोहरे के दिन। बल्कि कभी-कभी त

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  • एक सौ अस्सी रुपये की शर्त

    बेटे के चीखने की आवाज़ आ रही थी; वह नींद में डर गया था, शायद कोई बुरा सपना देखा होगा | हम दोनों एक साथ दौड़ कर उसके कमरे म

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