कविता

  • इब्बार रब्बी की तीन कविताएं

    कुरता

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  • अरुण कमलकुछ कविताएँ

    मैं लिख रहा हूँ निगरानी में वे देख रहे हैं मुझको बनाते एक एक हर्फ मेरे दाहिने कंधे को हिलते मेरा झुका माथा मैं उनकी

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  • जेल

    जेल के बाहर जेल जेल के अंदर भी और फिर उसके अंदर एक और जेल जो बाहर है, वह नहीं जान

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  • वे सब अब हमारी संख्याओं में हैं

    जो अब हमारे बीच नहीं हैं वे सब अब हमारी संख्याओं में हैं कल जो मेरा दोस्त मरा है वह कभी मेरे लिए अपने कोबे में भरकर ले

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  • प्रेम में छली गई औरत... 

    ये सुबह से रात तक  ये इस बात से उस बात तक तुम बोलती कम रोती ज्यादा हो तुम जानती हो कुछ है ही नही कहने को

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