जितनी देर तक संभव था, उससे भी काफी ज्यादा समय तक योगमाया ने इंतजार किया। इंतजार करते-करते उसे एक बार झपकी भी आ गई। ले
-अनुवाद: पापोरी गोस्वामी
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।