योगमाया अपने बारे में सोचकर खुद ही चकित है। कहां की थी और कहां रह रही है। अब ये घर, बगीचा और जंगल उसी का है। ये जंगल कि
-अनुवाद: पापोरी गोस्वामी
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।