गजल

  • जुनूं का जि़क्र बरा-ए-मलाल---

    जुनूं का जि़क्र बरा-ए-मलाल करती है। हमारी वेह्शत-ए-दिल भी कमाल करती है।।

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  • गुज़र रही हूँ ये किस इम्तिहाँ की हद से मैं

    गुज़र रही हूँ ये किस इम्तिहाँ की हद से मैं निकल न जाऊँ कहीं जिस्म -ओ- जाँ की हद से मैं

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