जुनूं का जि़क्र बरा-ए-मलाल करती है। हमारी वेह्शत-ए-दिल भी कमाल करती है।।
गुज़र रही हूँ ये किस इम्तिहाँ की हद से मैं निकल न जाऊँ कहीं जिस्म -ओ- जाँ की हद से मैं
एस.यू. जफर
प्रज्ञा शर्मा
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।