सुबह-सुबह मोबाइल फोन घुरघुराया। मैं नींद की गहराई से बाहर निकला तब तक उसकी वाइब्रेशन स्थिर हो चुकी थी।
अधलेटी मुद्रा में आंखें मलते-मलते मैंने तकिए के नीचे से उसे निकाला। बटन दबाकर बिना चश्मे लगाए फटाफट उसके स्क्रीन को घूरा। मेरे पुराने साथी शांतनु जायसवाल की मिस्ड कॉल थी। शांतनु से मेरी मुलाकात हुए या उससे फोन पर बात हुए शायद पांच-छह साल बीत चुके होंगे। उन दिनों ....
