इंद्रपाल सिंह तन्हा

इंद्रपाल सिंह तन्हा की ग़ज़लें

(1)

ला  की  बीहड़  वो रहगुज़र थी
फिर उस पे ज़ालिम वो दोपहर थी

थी तश्नगी और थे अश्क मेरे
तेरी नवािज़श तो मुख़्तसर थी

वो उस मसाप़फ़त की वो दो राहें
मेरी इधर थी, तेरी उधर थी
तुझे तो जल्दी थी, क्या समझता
भरी घटाओं-सी ये नज़र थी

था तन भी घायल, था मन भी घायल
सदा भी जो थी सो बेअसर थी
सभी थे अपनी ह....

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