शादी को समाज ने जिस कुशलता से महिमामंडित किया है, उसकी कोई मिसाल नहीं। इसे ‘सात जन्मों का बंधन’ जैसे शब्दों से सजाते हैं, जबकि हकीकत यह है कि यह एक ऐसा कानूनी-सामाजिक कॉन्ट्रैक्ट है जिसमें दो व्यस्क स्वेच्छा से अपनी निजी आजादी का दांव लगाते हैं, ज्यादातर मामलों में एक समझौता, जो तलाक के बिना तोड़ा नहीं जा सकता।
पहली ....
