मुकुल जोशी

तब और अब

जब-जब मैं होता हूं 

बाथ-रुम में

विचार शून्य

इधर-उधर आंखें घुमाता

तब-तब वह मुझे

कोने में दुबके, परित्यक्त, दुत्कारे गए

भिखारी या आवारा कुत्ते की तरह

अपनी बिरादरी के साथ

गुमसुम, बदरंग, लाचार जीव सा पड़ा

कुछ बोलता सा लगता है

मैं उस पर ध्यान ....

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