प्रेम
देह के अक्षांश से परे का प्रेम
कभी किसी को अलग नहीं करता
सैकड़ों किलोमीटर के फासले के बाद भी
सदा बना रहता है साथ ,
प्रेम के गणित से
अलहदा है जीवन का गणित ,
क्षितिज के उस पार
कभी था छाया प्रेम का वितान ,
गृहस्थी के झरोखों से झांकता
यथार्थ का आसमान
एक पूर्व प्रेमिका लौट जाना चाहती थी
उन्हीं आम्र कुंज की छांव में प्रियतम ....
