अनवर शमीम

अनवर शमीम की चार कविताएं

तांबे का देग (एक)

सोनू बावर्ची और तांबे का देग
दोनों का संग-साथ बेजोड़ था
मोहल्ले और आस-पास के बुजुर्ग 
जमाने भर के बाद भी 
दोनों को बड़े मन से याद करते हैं

सोनू बावर्ची जहां कहीं भी जाता
तो तांबे का यही देग उसके साथ होता था

तांबे का यह देग
कभी किसी रईस के दरवाजे तक नहीं गया
हमेशा आम लोगों की खुशियों में होता रहा शामिल
खुली जगह में
ईंटों से बन....

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