सतीश राठी

एक बड़े कस्बे के विभिन्न चरित्रें पर लिखा गया उपन्यास

पिछले कुछ वर्षों में सामाजिक एवं राष्ट्रीय स्तर पर चरित्रें का नैतिक पतन कुछ अधिक ही हो गया है। समाज स्वार्थ के मुद्दों पर विभाजित हो चला है। लालफीताशाही अपने चरम की ओर बढ़ती चली जा रही है। कस्बों की नेतागिरी शहरों से अधिक खतरनाक होती चली जा रही है। हमारे आस-पास के परिदृश्य खतरे का निशान पार करने लगे हैं और यह सब मन में वितृष्णा पैदा करने लगा है। आम आदमी के लिए ज....

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