तनवीर सक्सेना को अब लगता कि दिन-रात के घंटे अचानक बढ़ गए हैं। जब नौकरी में थे, तो समय का पता ही नहीं चलता था। अब वही चौबीस घंटे पहाड़ जैसे लगने लगे हैं। आखिर कोई कब तक मोबाइल से समय काट सकता है। लिखने-पढ़ने से मन उचाट होने लगा है। दिनभर तो किसी-न-किसी से बतियाते ही रहते हैं। वैसे भी उन्हीं की तरह सबको फुरसत थोड़े ही है। अचानक उन्हें याद आया कि बहुत दिन से सुकुमार का कोई म....
