मेरा लौटना पसंद नहीं आया
जब जा रहा था शहर मैं
अपने छोटे से बैग में भर कर
गांव की मुट्ठी भर मिट्टी
और देवस्थान में चढ़ाया था
अपने बिछड़ने के
कुछ आंसू
तब गांव की पछुआ हवा में
सर्द कण खुद ही घुल गए थे
ओसरा पर फैली तीखी धूप
बादलों के पीछे छिप गई थी
गली की गीली मिट्टी ने
संजोकर रख लिए थे
मेरे पांवों की निश....
