जीवन के रोजमर्रा अनुभवों से निकला उनका यथार्थ बोध ढाका का एक नया चेहरा हमारे सम्मुख ला रहा था। अतीत के तहखाने में उतरते हुए बतलाते हैं संदीप दा-
आज से दस बारह साल पहले तक यह डर नहीं था क्योंकि तब बंगलादेश में सूफी मार्का इस्लाम था। ऐसा इस्लाम जहां रवींद्र संगीत था, बाऊल गीत थे, नृत्य था, कला थी, कविताएं थीं। युवा थे, सब धर्मों के प्रति आदर था। न इतने बुरका थे, न....
