मेरे लिए तो मेरी कल्पनाओं की गहरी नदी में एक पतवार की तरह हो गई थी वह। और मुझे उसने दो हिस्सों में बांट दिया थाµएक तो वह जो कॉलेज आता था पढ़ने, डिबेट्स और राजनीति में हिस्सा लेने_ और दूसरा हिस्सा था वह, जो वहां सिर्फ और सिर्फ उससे मिलने जाता थाµनिरुद्देश्य, जिसकी कोई और इच्छा, कोई कामना, कोई लालसा नहीं थी। एक आकाशकुसुम के समान थी कविता मेरे लिए, जिसे छूने जैसी किसी इच्छा त....
