अकेली औरत
अकेली औरत
अपने बूते
पतझड़ के मौसम में
बसंत उगाती है
सूखे में नाव चलाती है
लू उगलती दोपहर में
जिंदगी के अलिखित
प्रेमपत्र को हवा में उड़ाती
गुलमोहर सी खिलखिलाती है
अकेली औरत
घर के हर कोने को
बासंती धूप दिखाकर
आकाश के वितान पर
फैला देती है अपने पंख
आजाद हवा को सा....
