राजकुमार कुंभज

राजकुमार कुंभज की कविताएं

एक दिन ऐसा ही हुआ

एक दिन ऐसा ही हुआ
मैं हुआ, दर्पण हुआ, फासला हुआ
कहने को तो वहीं मैं, वहीं दर्पण
लेकिन, उसी एक दर्पण में फासला हुआ
मैं वही, मगर वही, वैसा ही नहीं
जैसा कि था कल, वैसा नहीं हुआ
एक दिन ऐसा ही हुआ।

अंतिम हवा नहीं होगी अंतिम

ऊपर की ऊपर
और नीचे की नीचे ही रह जाएंगी सांसें
अंतिम हवा चल....

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