राजेश सकलानी

राजेश सकलानी की सात कविताएं

अनूठा दफ्तर

पचास जने हम रोज मिलते हैं 
अनूठे दफ्तर में
चलते हुए उपन्यास में
एक दूसरे की कमीजों से प्यार करने लगते हैं 
क्यों कि पहचानी हुईं चीजों से जीवन बनता है
हरेक चेहरा एक खबर है
फिजूल की बातों में सारगर्भित आवाजें प्रकट हो जाती हैं
कोई छिपा हुआ अनुभव झलक जाता है
तब हम मुस्कराते हैं
हमारे लंचबॉक्स सार्वजनिक है जिनक....

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