मैं कॉफी पी रही थी। खड़ी होकर आ रहे फोन को रिसीव करने के लिए गई। रिंग मानो उछलकर मुझे खींच रही हो, ऐसा लगा। फोन उठाया और हैलो कहूं, उसके पहले, ‘‘तुम दो दिन के लिए यहां आ जाओ।’’ हाथ में रखे कप में से गर्मागर्म कॉफी कुछ छलक गई, जिससे मैं जल गई।
मेरी आंखों के सामने उसका चेहरा तादृश्य हो गया। ऐसा लग रहा था, मानो रिसीवर में से आ रही आवाज के साथ-साथ स्वाति के आंसू भी रिसते हुए आ ....
