रसाल सिंह

 विश्वनाथ त्रिपाठी के  संस्मरणों में लोकचेतना

भारतीय संस्कृति वस्तुतः लोकधर्मी रही है। प्रायः लोक के विविध पक्ष भारतीय संस्कृति के पर्याय के रूप में ही चिह्नित किए जाते रहे हैं। विश्वनाथ त्रिपाठी के संस्मरणों में अभिव्यक्त लोकचेतना का विवेचन करने से पूर्व लोक को समझना समीचीन जान पड़ता है। ‘लोक’ के संबंध में डॉ- हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने विचार इन शब्दों में प्रकट किए हैंµ‘लोक’ शब्द का अर्थ ‘जन-पद’ ....

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