'शोले’ फिल्म का एक संवाद है-‘इतना सन्नाटा क्यों है भाई।’ महज चार शब्दों का यह डायलॉग बोलकर ए-के- हंगल साहब छा गए थे। आज भी यह डायलॉग कितना प्रासंगिक और अर्थपूर्ण है। असल में, किसी भी दौर में सन्नाटे से भयावह कुछ और नहीं हो सकता है। विडंबना यह है कि एक तरफ हम निरंतर आधुनिकता के सोपान चढ़ते जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ उससे ज्यादा दकियानूसी ख्यालों के जद में समा र....
