‘---क्या-क्या विचित्र बात है! ---काम किसका, नाम किसका!’ बोलते हुए हरिश्चंद्र ने सिर को झटका दिया। कंधों पर खेलने लगे घुंघराले बाल। तीन संगी-सहयोगी धक्के देने में जुटे हैं लेकिन चढ़ाई चढ़ती बैलगाड़ी की गति शून्य के आसपास ही बनी हुई है। मन में आया, इस श्रीजगन्नाथ-तीर्थ के पुण्य-लाभ का बड़ा भाग प्रभु इन श्रमशील नंदी-वंशजों को दे डालें तो यह यात्र-सुख अधिक तृप्तिकर हो।
वशिष्ट न....
