पिता से बात
मैंने पिता से कभी मन भर बात नहीं की
संकोच में केवल जो पूछते
वह बता देता
कभी हिला देता था मुंडी और
यह डर हरगिज नहीं था
तब मुझे लगता था कि
जब उम्र बीतेगी और
मैं और पिता दोनों
और गहरे दोस्त हो जाएंगे
तब खूब सारी बातें करूंगा
तब संकोच थोड़ा कम हो जाएगा
साहस कुछ और बढ़ जाए....
