एक
हवा के साथ मिलकर पंछियों के पर को ले डूबा ।
तरक्की का धुँआ धरती तो क्या अंबर को ले डूबा ।।
ज़माना छोड़कर पीछे हमें आगे निकलना था ।
जुनूँ आगे निकलने का ज़माने भर को ले डूबा ।।
तभी से ही न कोई सूर मीराँ&nb....
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।