पत्तों पर बरस कर भाप बन उड़ती धूप का रंग यहाँ हरा है! कमरे से, जहां वह खड़ा है,खुली खिड़की के फ्रेम में बंधा जंगल का पूरा परिदृश्य पानी-सा तरल और चमकदार दिख रहा, जैसे किसी चश्मे की ठहरी हुई सतह पर प्रतिबिंबित हो रहा- पारे की रुपहली कौंध से भरा हुआ...
टेबल से चाय का प्याला उठा कर वह खिड़की पर आ खड़ा हुआ था, इस पुरसुकूं सुबह को अपनी त्वचा पर महसूस करने। भीतर किसी क़िताब का जमाने सेमुड़....
