हिंदी सिनेमा भारतीय समाज के संघर्ष, आशा-आकांक्षा और टूटन का जीवंत दस्तावेज़ है । वक्त के हर पड़ाव के साथ परिवर्तित-संवर्द्धित होता हिंदी सिनेमा अब परिपक्व हो रहा है। समानांतर सिनेमा ने जिस तरह गंभीर सामाजिक मुद्दों को फिल्मों का विषय बनाया और प्रश्न खडे किए, उसमें दर्शक स्वयं को बदलाव की भूमिका में महसूस करता है। ठीक ऐसी स्थिति आज के सिनेमा में दिखाई देती है। तात्कालिक स....
