मूल लेखक-डॉ. भवेंद्रनाथ सैकिया
अनुवाद- पापोरी गोस्वामी
काफी देर से राधा, लाखेस्वर और तारा सामने वाले बरामदे में खड़े होकर सड़क की तरफ नज़र गड़ाए हुए बेसब्री से योगमाया का इंतज़ार कर रहे थे. आख़िर दूर से योगमाया को घर की तरफ आते हुए देख कर उन लोगों को राहत मिली. राधा आगे बढ़कर गेट के पास पहुंची और माँ से पूछा, “ कहाँ गई थी?”
योगमाया ने कोई जवाब नहीं दि....
