राम एक वैदिक कल्पना है
मेरी अवधारणा में
न शबरी के झूठे बेर खाने वाला राम ही है
न कैकैयी इच्छा पर चौदह वर्ष
वनवास का वरण करने वाला राम
मेरी परिचय का एक भी राम
किसी शम्बूक का वध नही करता
न ही किसी केवट से पॉँव धुलवाता है
उसके पैरों की ठोकर किसी अहिल्या के स्त्रीत्व से पुण्य नही है
उसके खड़ाऊ किसी मनुष्य से इतन....